इस हाल में कब तक यूँही घुट घुट के जियूँगा
रूठा है वो ऐसे कि मना भी नहीं सकता
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कौन है किस का ये पैग़ाम है क्या अर्ज़ करूँ
अब मैं हूँ और ख़्वाब-ए-परेशाँ है मेरे साथ
रो पड़ा ना-गहाँ मुस्कुराने के बा'द
जब से में ने देखा है एक ख़ुशनुमा चेहरा
उर्दू की शोहरा-ए-आफ़ाक़ वेब-साइट रेख़्ता की इल्मी-ओ-अदबी ख़िदमात पर मंज़ूम तअस्सुरात
तख़्ता-ए-मश्क़-ए-सितम मुझ को बनाने वाला
ज़िंदगी उस ने बदल कर मिरी रख दी ऐसी
हिंसा के पहले मुझे फिर रुला गया इक शख़्स
रूठने और मनाने के एहसास में है इक कैफ़-ओ-सुरूर
एहसास का वसीला-ए-इज़हार है ग़ज़ल
था जो मेरे ज़ौक़ का सामान आधा रह गया
न आए काम किसी के जो ज़िंदगी क्या है