इसी लिए तो हार का हुआ नहीं मलाल तक
वो मेरे साथ साथ था उरूज से ज़वाल तक
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ऐसी भी कहाँ बे-सर-ओ-सामानी हुई है
सड़क के पार चला जा रहा है बचता हुआ
बाज़ार-ए-आरज़ू में कटी जा रही है उम्र
दस्तक हवा की सुन के कभी डर नहीं गया
उन से भी पूछिए कभी अपनी ज़मीं का कर्ब
ऐसा इलाज-ए-हब्स-ए-दिल-ए-ज़ार चाहिए
धुँद में खो के रह गईं सूरतें मेहर-ओ-माह सी
फ़ित्ना उठा तो रज़्म-गह-ए-ख़ाक से उठा
किसे ख़बर कि है क्या क्या ये जान थामे हुए
तू ने भी सारे ज़ख़्म किसी तौर सह लिए
आहन ओ संग को ज़हराब-ए-फ़ना चाट गया