आहन ओ संग को ज़हराब-ए-फ़ना चाट गया
पहले दीवार शिकस्ता हुई फिर बाब गिरा
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क्या ढूँडने निकली है किसी क़ैस को पागल
बाज़ार-ए-आरज़ू में कटी जा रही है उम्र
सड़क के पार चला जा रहा है बचता हुआ
इसी लिए तो हार का हुआ नहीं मलाल तक
दस्तक हवा की सुन के कभी डर नहीं गया
अब सोचिए तो दाम-ए-तमन्ना में आ गए
इश्क़ में हो के मुब्तिला दिल ने कमाल कर दिया
ऐसी भी कहाँ बे-सर-ओ-सामानी हुई है
क़र्या-ए-इंतिज़ार में उम्र गँवा के आए हैं
किसे ख़बर कि है क्या क्या ये जान थामे हुए