Heart Broken Poetry of Ahmad Faraz (page 5)

Heart Broken Poetry of Ahmad Faraz (page 5)
नामअहमद फ़राज़
अंग्रेज़ी नामAhmad Faraz
जन्म की तारीख1931
मौत की तिथि2008

मिज़ाज हम से ज़ियादा जुदा न था उस का

मंज़िलें एक सी आवारगीयाँ एक सी हैं

मैं तो मक़्तल में भी क़िस्मत का सिकंदर निकला

ले उड़ा फिर कोई ख़याल हमें

क्यूँ न हम अहद-ए-रिफ़ाक़त को भुलाने लग जाएँ

क्या ऐसे कम-सुख़न से कोई गुफ़्तुगू करे

ख़ुद को तिरे मेआर से घट कर नहीं देखा

ख़ामोश हो क्यूँ दाद-ए-जफ़ा क्यूँ नहीं देते

कठिन है राहगुज़र थोड़ी दूर साथ चलो

कशीदा सर से तवक़्क़ो अबस झुकाव की थी

करूँ न याद मगर किस तरह भुलाऊँ उसे

कल हम ने बज़्म-ए-यार में क्या क्या शराब पी

कहा था किस ने कि अहद-ए-वफ़ा करो उस से

जुज़ तिरे कोई भी दिन रात न जाने मेरे

जो क़ुर्बतों के नशे थे वो अब उतरने लगे

जो ग़ैर थे वो इसी बात पर हमारे हुए

जो भी दरून-ए-दिल है वो बाहर न आएगा

जिस से ये तबीअत बड़ी मुश्किल से लगी थी

जब यार ने रख़्त-ए-सफ़र बाँधा कब ज़ब्त का पारा उस दिन था

जब तुझे याद करें कार-ए-जहाँ खेंचता है

जब तिरी याद के जुगनू चमके

जब हर इक शहर बलाओं का ठिकाना बन जाए

जब भी दिल खोल के रोए होंगे

इश्क़ नश्शा है न जादू जो उतर भी जाए

इस से पहले कि बे-वफ़ा हो जाएँ

इस क़दर मुसलसल थीं शिद्दतें जुदाई की

हम तो ख़ुश थे कि चलो दिल का जुनूँ कुछ कम है

हम भी शाएर थे कभी जान-ए-सुख़न याद नहीं

हवा के ज़ोर से पिंदार-ए-बाम-ओ-दर भी गया

हर कोई दिल की हथेली पे है सहरा रक्खे

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