Islamic Poetry of Ahmad Faraz

Islamic Poetry of Ahmad Faraz
नामअहमद फ़राज़
अंग्रेज़ी नामAhmad Faraz
जन्म की तारीख1931
मौत की तिथि2008

उम्र भर कौन निभाता है तअल्लुक़ इतना

तू ख़ुदा है न मिरा इश्क़ फ़रिश्तों जैसा

बंदगी हम ने छोड़ दी है 'फ़राज़'

अब ज़मीं पर कोई गौतम न मोहम्मद न मसीह

तो बेहतर है यही

ऐ मेरे वतन के ख़ुश-नवाओ

ऐ मेरे सारे लोगो

यूँही मर मर के जिएँ वक़्त गुज़ारे जाएँ

ये क्या कि सब से बयाँ दिल की हालतें करनी

ये आलम शौक़ का देखा न जाए

उस को जुदा हुए भी ज़माना बहुत हुआ

तरस रहा हूँ मगर तू नज़र न आ मुझ को

मिज़ाज हम से ज़ियादा जुदा न था उस का

जुज़ तिरे कोई भी दिन रात न जाने मेरे

इस से पहले कि बे-वफ़ा हो जाएँ

हर कोई दिल की हथेली पे है सहरा रक्खे

गिला फ़ुज़ूल था अहद-ए-वफ़ा के होते हुए

ग़ैरत-ए-इश्क़ सलामत थी अना ज़िंदा थी

दुख फ़साना नहीं कि तुझ से कहें

चले थे यार बड़े ज़ोम में हवा की तरह

चाक-पैराहनी-ए-गुल को सबा जानती है

अगरचे ज़ोर हवाओं ने डाल रक्खा है

अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें

अब और क्या किसी से मरासिम बढ़ाएँ हम

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