अब ज़मीं पर कोई गौतम न मोहम्मद न मसीह
आसमानों से नए लोग उतारे जाएँ
Anwar Masood
Faiz Ahmad Faiz
Habib Jalib
Ahmad Faraz
Gulzar
Wasi Shah
Parveen Shakir
Rahat Indori
Jaun Eliya
Mohsin Naqvi
Allama Iqbal
Mir Taqi Mir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(2773) Peoples Rate This
पहले पहले हवस इक-आध दुकाँ खोलती है
यूँ तो पहले भी हुए उस से कई बार जुदा
कुछ इस तरह से गुज़ारी है ज़िंदगी जैसे
हम अगर मंज़िलें न बन पाए
किस किस को बताएँगे जुदाई का सबब हम
शो'ला था जल-बुझा हूँ हवाएँ मुझे न दो
ले उड़ा फिर कोई ख़याल हमें
मैं ने देखा है बहारों में चमन को जलते
हम को उस शहर में तामीर का सौदा है जहाँ
मैं भी पलकों पे सजा लूँगा लहू की बूँदें
कल हम ने बज़्म-ए-यार में क्या क्या शराब पी
टूटा तो हूँ मगर अभी बिखरा नहीं 'फ़राज़'