फूल थे रंग थे लम्हों की सबाहत हम थे
ऐसे ज़िंदा थे कि जीने की अलामत हम थे
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अब तो ख़ुद अपनी ज़रूरत भी नहीं है हम को
ये जो फूलों से भरा शहर हुआ करता था
तिरे जैसा मेरा भी हाल था न सुकून था न क़रार था
अजब नशा है तिरे क़ुर्ब में कि जी चाहे
कभी तू ने ख़ुद भी सोचा कि ये प्यास है तो क्यूँ है
तुम्हें जब कभी मिलें फ़ुर्सतें मिरे दिल से बोझ उतार दो
डाइरी में सारे अच्छे शेर चुन कर लिख लिए
दिए मुंडेर प रख आते हैं हम हर शाम न जाने क्यूँ
बंदे ज़मीन और आसमाँ सरमा की शब कहानियाँ
तअल्लुक़ात में गहराइयाँ तो अच्छी हैं
छोटे छोटे कई बे-फ़ैज़ मफ़ादात के साथ
आँखों से अयाँ ज़ख़्म की गहराई तो अब है