जब भी मिलता हूँ वही चेहरा लिए
बद-दुआ देता है आईना मुझे
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माँ ने लिखा है ख़त में जहाँ जाओ ख़ुश रहो
आरज़ू थी खींचते हम भी कोई अक्स-ए-हयात
हर घड़ी रहता है अब ख़दशा मुझे
शहर शहर ढूँड आए दर-ब-दर पुकार आए
दो पल के हैं ये सब मह ओ अख़्तर न भूलना
याद-ए-फ़िराक-ए-यार तिरा शुक्रिया बहुत
वक़्त-ए-सफ़र क़रीब है बिस्तर समेट लूँ
तार-ए-नज़र भी ग़म की तमाज़त से ख़ुश्क है
ऐ हुस्न जब से राज़ तिरा पा गए हैं हम
'अजमल' न आप सा भी कोई सख़्त-जाँ मिला
हर उजाला नई सहर तो नहीं