इक बर्ग-ए-मुज़्महिल ने ये स्पीच में कहा
मौसम की कुछ ख़बर नहीं ऐ डालियो तुम्हें
अच्छा जवाब-ए-ख़ुश्क ये इक शाख़ ने दिया
मौसम से बा-ख़बर हों तो क्या जड़ को छोड़ दें
Mir Taqi Mir
Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
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Gulzar
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हर एक को नौकरी नहीं मिलने की
ये दिलबरी ये नाज़ ये अंदाज़ ये जमाल
जो तुम्हारे लब-ए-जाँ-बख़्श का शैदा होगा
हवा-ए-शब भी है अम्बर-अफ़्शाँ उरूज भी है मह-ए-मुबीं का
लगावट की अदा से उन का कहना पान हाज़िर है
अपने पहलू से वो ग़ैरों को उठा ही न सके
बस जान गया मैं तिरी पहचान यही है
तिरी ज़ुल्फ़ों में दिल उलझा हुआ है
मय भी होटल में पियो चंदा भी दो मस्जिद में
ग़फ़लत की हँसी से आह भरना अच्छा
एक काफ़िर पर तबीअत आ गई
मिरा मोहताज होना तो मिरी हालत से ज़ाहिर है