कह दो कि मैं ख़ुश हूँ रखूँ गर आप को ख़ुश
बिजली चमकाऊँ और करूँ भाप को ख़ुश
सीखूँ हर इल्म-ओ-फ़न मगर फ़र्ज़ ये है
हर हाल में रखूँ अपने माँ बाप को ख़ुश
Rahat Indori
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बूढ़ों के साथ लोग कहाँ तक वफ़ा करें
एक काफ़िर पर तबीअत आ गई
नई तहज़ीब
साँस लेते हुए भी डरता हूँ
लोग कहते हैं बदलता है ज़माना सब को
हया से सर झुका लेना अदा से मुस्कुरा देना
तहसीन के लायक़ तिरा हर शेर है 'अकबर'
हवा-ए-शब भी है अम्बर-अफ़्शाँ उरूज भी है मह-ए-मुबीं का
जो वक़्त-ए-ख़त्ना मैं चीख़ा तो नाई ने कहा हँस कर
हर चंद बगूला मुज़्तर है इक जोश तो उस के अंदर है
ख़ुशी है सब को कि ऑपरेशन में ख़ूब निश्तर ये चल रहा है
नाज़ क्या इस पे जो बदला है ज़माने ने तुम्हें