तदबीर करें तो इस में नाकामी हो
तक़दीर का नाम लें तो बद-नामी हो
अल-क़िस्सा अजीब ज़ीक़ में हैं हिन्दी
यूरोप का ख़ुदा कहाँ पर जो हामी हो
Habib Jalib
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खींचो न कमानों को न तलवार निकालो
क़ौम के ग़म में डिनर खाते हैं हुक्काम के साथ
रहता है इबादत में हमें मौत का खटका
एज़ाज़-ए-सलफ़ के मिटते जाते हैं निशाँ
पब्लिक में ज़रा हाथ मिला लीजिए मुझ से
रंग-ए-शराब से मिरी निय्यत बदल गई
इश्वा भी है शोख़ी भी तबस्सुम भी हया भी
लुत्फ़ चाहो इक बुत-ए-नौ-ख़ेज़ को राज़ी करो
दरबार1911
वज़्न अब उन का मुअ'य्यन नहीं हो सकता कुछ
बस जान गया मैं तिरी पहचान यही है
नौकरों पर जो गुज़रती है मुझे मालूम है