जिस तरह ख़्वाब के हल्के से धुँदलके में कोई
चाँद तारों की तरह नूर सा बरसाता है
हाँ यूँही मेरे तसव्वुर के गुलिस्तानों में
फूल खिल जाते हैं जब तेरा ख़याल आता है
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तख़्लीक़ पे फ़ितरत की गुज़रता है गुमाँ और
सितारों के पयाम आए बहारों के सलाम आए
जन्नत ओ कौसर ओ अफ़रिश्ता ओ हूर ओ जिब्रील
ये तो हैं चंद ही जल्वे जो छलक आए हैं
शम्अ की तरह पिघलते हुए दिल देखे हैं
मस्ती-ए-रिंदाना हम सैराबी-ए-मय-ख़ाना हम
दो चराग़
हवा-ए-सुब्ह-ए-मशरिक़ जाग उठी है
शिकायतें भी बहुत हैं हिकायतें भी बहुत
शाख़-ए-गुल है कि ये तलवार खिंची है यारो
मेरी दुनिया में मोहब्बत नहीं कहते हैं इसे
तीन शराबी