कभी हम से कभी ग़ैरों से शनासाई है
बात कहने की नहीं तू भी तो हरजाई है
Rahat Indori
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फ़रिश्ते आदम को जन्नत से रुख़्सत करते हैं
तू क़ादिर ओ आदिल है मगर तेरे जहाँ में
ये हूरयान-ए-फ़रंगी दिल ओ नज़र का हिजाब
एक सरमस्ती ओ हैरत है सरापा तारीक
बच्चे की दुआ
तमन्ना दर्द-ए-दिल की हो तो कर ख़िदमत फ़क़ीरों की
शिकवा
मिटा दिया मिरे साक़ी ने आलम-ए-मन-ओ-तू
हमदर्दी
मुझे आह-ओ-फ़ुग़ान-ए-नीम-शब का फिर पयाम आया
ढूँड रहा है फ़रंग ऐश-ए-जहाँ का दवाम
दिल सोज़ से ख़ाली है निगह पाक नहीं है