Ghazals of Ambar Bahraichi

Ghazals of Ambar Bahraichi
नामअम्बर बहराईची
अंग्रेज़ी नामAmbar Bahraichi
जन्म स्थानLucknow

वो लम्हा मुझ को शश्दर कर गया था

शब ख़्वाब के जज़ीरों में हँस कर गुज़र गई

मिरे चेहरे पे जो आँसू गिरा था

मैं अपनी वुसअतों को उस गली में भूल जाता हूँ

क्यूँ न हों शाद कि हम राहगुज़र में हैं अभी

जलते हुए जंगल से गुज़रना था हमें भी

जगमगाती रौशनी के पार क्या था देखते

हर तरफ़ उस के सुनहरे लफ़्ज़ हैं फैले हुए

हर लम्हा सैराबी की अर्ज़ानी है

हँसते हुए चेहरे में कोई शाम छुपी थी

गुलाब था न कँवल फिर बदन वो कैसा था

गीली मिट्टी हाथ में ले कर बैठा हूँ

गर्दिश का इक लम्हा यूँ बेबाक हुआ

दरवाज़ा वा कर के रोज़ निकलता था

चेहरों पे ज़र-पोश अंधेरे फैले हैं

बुरीदा बाज़ुओं में वो परिंद लाला-बार था

अब क़बीले की रिवायत है बिखरने वाली

आज फिर धूप की शिद्दत ने बड़ा काम किया

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