अदा हुआ न कभी मुझ से एक सज्दा-ए-शुक्र
मैं किस ज़बाँ से करूँगा शिकायतें तेरी
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सर-ए-राह मिल के बिछड़ गए था बस एक पल का वो हादसा
फ़सील-ए-जिस्म पे शब-ख़ूँ शरारतें तेरी
चराग़ चाँद शफ़क़ शाम फूल झील सबा
मिरी नज़र में आ गया है जब से इक सहीफ़ा-रुख़
क्या अजब है कि ये मुट्ठी में हमारी आ जाए
लौट कर यक़ीनन मैं एक रोज़ आऊँगा
ख़ुद-कुशी का अलमिया
बड़ी फ़र्ज़-आश्ना है सबा करे ख़ूब काम हिसाब का
लहजे का रस हँसी की धनक छोड़ कर गया
अब किसी अंधे सफ़र के लिए तय्यार हुआ चाहता है
आबादियों में कैसे दरिंदे घुस आए हैं
तेशा-ब-कफ़ को आइना-गर कह दिया गया