चराग़ चाँद शफ़क़ शाम फूल झील सबा
चुराईं सब ने ही कुछ कुछ शबाहतें तेरी
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कोई पुराना ख़त कुछ भूली-बिसरी याद
और कुछ याद नहीं अब से न तब से पूछो
रक़्स-ए-जुनूँ की गर्मी-ए-तासीर देखना
ख़ुद-कुशी का अलमिया
सर-ए-राह मिल के बिछड़ गए था बस एक पल का वो हादसा
क्या अजब है कि ये मुट्ठी में हमारी आ जाए
अब इस सादा कहानी को नया इक मोड़ देना था
यक-ब-यक जाँ से गुज़रना तो है आसाँ 'अंजुम'
लौट कर यक़ीनन मैं एक रोज़ आऊँगा
ये रात ढलते ढलते रख गई जवाब के लिए
अब किसी अंधे सफ़र के लिए तय्यार हुआ चाहता है