यक-ब-यक जाँ से गुज़रना तो है आसाँ 'अंजुम'
क़तरा क़तरा कई क़िस्तों में पिघल कर देखें
Wasi Shah
Javed Akhtar
Habib Jalib
Mir Taqi Mir
Ahmad Faraz
Jaun Eliya
Parveen Shakir
Anwar Masood
Faiz Ahmad Faiz
Rahat Indori
Mohsin Naqvi
Gulzar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(631) Peoples Rate This
लहजे का रस हँसी की धनक छोड़ कर गया
बड़ी फ़र्ज़-आश्ना है सबा करे ख़ूब काम हिसाब का
मिरी नज़र में आ गया है जब से इक सहीफ़ा-रुख़
तेशा-ब-कफ़ को आइना-गर कह दिया गया
ये रात ढलते ढलते रख गई जवाब के लिए
क्या अजब है कि ये मुट्ठी में हमारी आ जाए
अब इस सादा कहानी को नया इक मोड़ देना था
आबादियों में कैसे दरिंदे घुस आए हैं
धूप आती नहीं रुख़ अपना बदल कर देखें
अदा हुआ न कभी मुझ से एक सज्दा-ए-शुक्र
जो न हों कुछ तशरीह-तलब कम होते हैं
ख़ुद-कुशी का अलमिया