यही दरमाँ है मेरी इक़तिसादी तीरा-बख़्ती का
मिरे अंदर कोई फूटे किरन ख़ुद-एहतिसाबी की
मिरी मंसूबा-बंदी में छुपी है क़र्ज़ की दीमक
''मिरी तामीर में मुज़्मर है इक सूरत ख़राबी की''
Ahmad Faraz
Allama Iqbal
Wasi Shah
Habib Jalib
Mohsin Naqvi
Jaun Eliya
Rahat Indori
Gulzar
Parveen Shakir
Mir Taqi Mir
Anwar Masood
Faiz Ahmad Faiz
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(2590) Peoples Rate This
ताज़ा ख़बर
हमें क़रीना-ए-रंजिश कहाँ मयस्सर है
उस हसीं के ख़याल में रहना
अजीब लुत्फ़ था नादानियों के आलम में
पलकों के सितारे भी उड़ा ले गई 'अनवर'
दर्द बढ़ता ही रहे ऐसी दवा दे जाओ
आप कराएँ हम से बीमा छोड़ें सब अंदेशों को
जौहर ओ जवाहिर
शिकवा-ए-गर्दिश-ए-हालात लिए फिरता है
अगले दिन कुछ ऐसे होंगे
सर-दर्द में गोली ये बड़ी ज़ूद-असर है
क्यूँ किसी और को दुख दर्द सुनाऊँ अपने