अच्छों को तो सब ही चाहते हैं
है कोई कि मैं बहुत बुरा हूँ
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उन की सूरत हमें आई थी पसंद आँखों से
ज़हर की चुटकी ही मिल जाए बराए दर्द-ए-दिल
कहाँ है शैख़ को सुध-बुध मज़ीद पीने की
मेरे घर के तमाम दरवाज़े
याद करो जब रात हुई थी
किसी ग़रीब को ज़ख़्मी करें कि क़त्ल करें
इस तअल्लुक़ में नहीं मुमकिन तलाक़
वो मुझ से रूठ न जाती तो और क्या करती
मैं अपने-आप से पीछा छुड़ा के
गो कठिन है तय करना उम्र का सफ़र तन्हा
मिरी हयात है बस रात के अँधेरे तक