सर-बुलंदी मिरी तंहाई तक आ पहुँची है
मैं वहाँ हूँ कि जहाँ कोई नहीं मेरे सिवा
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जुनूँ के तौर हम इदराक ही से बाँधते हैं
हवेली छोड़ने का वक़्त आ गया 'अरशद'
कुछ सितारे मिरी पलकों पे चमकते हैं अभी
मेहर ओ महताब को मेरे ही निशाँ जानती है
मिरे ख़ेमे ख़स्ता-हाल में हैं मिरे रस्ते धुँद के जाल में हैं
हल्क़ा-ए-दिल से न निकलो कि सर-ए-कूचा-ए-ख़ाक
उन्हें ये ज़ोम कि बे-सूद है सदा-ए-सुख़न
ये किस को याद किया रूह की ज़रूरत ने
दिल को मालूम है क्या बात बतानी है उसे
रुकते हुए क़दमों का चलन मेरे लिए है
घटाएँ घिरती हैं बिजली कड़क के गिरती है
ग़लत नहीं है दिल-ए-सुल्ह-ख़ू जो बोलता है