मिलता है क़ैद-ए-ग़म में भी लुत्फ़-ए-फ़ज़ा-ए-बाग़

मिलता है क़ैद-ए-ग़म में भी लुत्फ़-ए-फ़ज़ा-ए-बाग़

चाक-ए-क़फ़स से आती है फ़रफ़र हवा-ए-बाग़

रोके ज़बाँ न बुलबुल-ए-बुस्ताँ सरा-ए-बाग़

दोहराए फिर मिरे से कहो माजरा-ए-बाग़

सुनते हैं अब की आई है किस धूम से बहार

क्या जी फड़क रहा है क़फ़स में बराए बाग़

किन चहचहों में अपनी बसर होती थी मुदाम

ऐ हम-सफ़ीर क्या हो बयाँ माजरा-ए-बाग़

गुज़रे नसीम इधर से तो पूछेंगे हम असीर

हम को भी याद करते हैं नग़्मा-सरा-ए-बाग़

ऐ हम-सफ़ीर अब तो चले क़ैद हो के हम

तक़दीर देखिए हमें फिर कब दिखाए बाग़

मुझ मस्त का चमन में शनासा कोई नहीं

इक दुख़्त-ए-रज़ क़दीम से है आश्ना-ए-बाग़

पाते हैं सर्व-ए-गुल में तिरी शक्ल क़द्द-ओ-रुख़

फ़ुर्क़त में जी कहीं नहीं लगता सिवाए बाग़

उस दिन से अपने बुलबुल-ए-दिल को है इश्क़-ए-गुल

गुलज़ार-ए-दहर में हुई जैसे बिना-ए-बाग़

मिलता नहीं है नख़्ल-ए-तमन्ना से याँ समर

फिर कोई किस उमीद पे इस जा लगाए बाग़

नर्गिस की है वो आँख न गुल का वो रंग है

चलती है अब की साल मुख़ालिफ़ हवा-ए-बाग़

अब चहचहे हैं वो न नवा-संजियाँ हैं वो

शायद गुज़र गया 'क़लक़'-ए-ख़ुश-नवा-ए-बाग़

(779) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Milta Hai Qaid-e-gham Mein Bhi Lutf-e-faza-e-bagh In Hindi By Famous Poet Arshad Ali Khan Qalaq. Milta Hai Qaid-e-gham Mein Bhi Lutf-e-faza-e-bagh is written by Arshad Ali Khan Qalaq. Complete Poem Milta Hai Qaid-e-gham Mein Bhi Lutf-e-faza-e-bagh in Hindi by Arshad Ali Khan Qalaq. Download free Milta Hai Qaid-e-gham Mein Bhi Lutf-e-faza-e-bagh Poem for Youth in PDF. Milta Hai Qaid-e-gham Mein Bhi Lutf-e-faza-e-bagh is a Poem on Inspiration for young students. Share Milta Hai Qaid-e-gham Mein Bhi Lutf-e-faza-e-bagh with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.