गुलगश्त-ए-बाग़ को जो गया वो गुल-ए-फ़रंग
ग़ुंचे सलाम करते थे टोपी उतार के
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गुलों पर साफ़ धोका हो गया रंगीं कटोरी का
परतव-ए-रुख़ का तिरे दिल में गुज़र रहता है
यही इंसाफ़ तिरे अहद में है ऐ शह-ए-हुस्न
ये बोले जो उन को कहा बे-मुरव्वत
नहीं चमके ये हँसने में तुम्हारे दाँत अंजुम से
याद दिलवाइए उन को जो कभी वादा-ए-वस्ल
बाक़ी न हुज्जत इक दम-ए-इसबात रह गई
सितम वो तुम ने किए भूले हम गिला दिल का
पूछा सबा से उस ने पता कू-ए-यार का
बना कर तिल रुख़-ए-रौशन पर दो शोख़ी से से कहते हैं
ज़मीन पाँव के नीचे से सरकी जाती है
छेड़ा अगर मिरे दिल-ए-नालाँ को आप ने