सितम वो तुम ने किए भूले हम गिला दिल का
हुआ तुम्हारे बिगड़ने से फ़ैसला दिल का
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न वो ख़ुशबू है गुलों में न ख़लिश ख़ारों में
गुल-गूँ तिरी गली रहे आशिक़ के ख़ून से
बाक़ी न हुज्जत इक दम-ए-इसबात रह गई
काबे से खींच लाया हम को सनम-कदे में
करेंगे हम से वो क्यूँकर निबाह देखते हैं
जमे क्या पाँव मेरे ख़ाना-ए-दिल में क़नाअ'त का
करो तुम मुझ से बातें और मैं बातें करूँ तुम से
वाइज़ की ज़िद से रिंदों ने रस्म-ए-जदीद की
खुलने से एक जिस्म के सौ ऐब ढक गए
बे-अब्र रिंद पीते नहीं वाइ'ज़ो शराब
ख़फ़ा हो गालियाँ दो चाहे आने दो न आने दो
आएँगे वो तो आप में हरगिज़ न आएँगे