Ghazals of Arshad Jamal 'Sarim'

Ghazals of Arshad Jamal 'Sarim'
नामअरशद जमाल 'सारिम'
अंग्रेज़ी नामArshad Jamal 'Sarim'

ये ख़ाकी पैरहन इक इस्म की बंदिश में रहता है

प्यास हर ज़र्रा-ए-सहरा की बुझाई गई है

पलट कर देखने का मुझ में यारा ही नहीं था

नित-नए नक़्श से बातिन को सजाता हुआ मैं

क्या कहूँ कितनी अज़िय्यत से निकाली गई शब

क्या कहूँ कितना फ़ुज़ूँ है तेरे दीवाने का दुख

किश्त-ए-एहसास में थोड़ा सा मिला लेंगे तुझे

कहाँ कहाँ से सुनाऊँ तुम्हें फ़साना-ए-शब

जुड़े हुए हैं परी-ख़ाने मेरे काग़ज़ से

इज़्तिराब ऐसा हुआ दिल का सहारा मुझ को

फ़ना हुआ तो मैं तार-ए-नफ़स में लौट आया

दो-चार सितारे ही मिरी आँख में धर जा

दिखाती है जो ये दुनिया वो बैठा देखता हूँ मैं

बे-अमाँ हूँ इन दिनों मैं दर-ब-दर फिरता हूँ मैं

बस कि इक लम्स की उम्मीद पे वारे हुए हैं

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