ऐसी ही बे-चेहरगी छाई हुई है शहर में
आप-अपना अक्स हूँ मैं आप आईना हूँ मैं
Rahat Indori
Parveen Shakir
Anwar Masood
Wasi Shah
Mir Taqi Mir
Allama Iqbal
Habib Jalib
Gulzar
Mohsin Naqvi
Javed Akhtar
Ahmad Faraz
Jaun Eliya
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(677) Peoples Rate This
ज़िंदगी तू भी हमें वैसे ही इक रोज़ गुज़ार
पलट कर देखने का मुझ में यारा ही नहीं था
बे-अमाँ हूँ इन दिनों मैं दर-ब-दर फिरता हूँ मैं
ज़िंदगी हम से तिरी आँख-मिचोली कब तक
इज़्तिराब ऐसा हुआ दिल का सहारा मुझ को
बस कि इक लम्स की उम्मीद पे वारे हुए हैं
इसी बाइस मैं अपना निस्फ़ रखता हूँ अँधेरे में
हर एक शाख़ पे वीरानियाँ मुसल्लत हैं
रक़म करूँ भी तो कैसे मैं दास्तान-ए-वफ़ा
न जाने उस ने खुले आसमाँ में क्या देखा
जाने किस रुत में खिलेंगे यहाँ ताबीर के फूल
ये ख़ाकी पैरहन इक इस्म की बंदिश में रहता है