रक़म करूँ भी तो कैसे मैं दास्तान-ए-वफ़ा
हुरूफ़ फिरते हैं बेगाने मेरे काग़ज़ से
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देख ऐ मेरी ज़बूँ-हाली पे हँसने वाले
किस की तनवीर से जल उठ्ठे बसीरत के चराग़
जाने किस रुत में खिलेंगे यहाँ ताबीर के फूल
ज़िंदगी हम से तिरी आँख-मिचोली कब तक
हर एक शाख़ पे वीरानियाँ मुसल्लत हैं
पलट कर देखने का मुझ में यारा ही नहीं था
प्यास हर ज़र्रा-ए-सहरा की बुझाई गई है
इज़्तिराब ऐसा हुआ दिल का सहारा मुझ को
बे-अमाँ हूँ इन दिनों मैं दर-ब-दर फिरता हूँ मैं
फ़ना हुआ तो मैं तार-ए-नफ़स में लौट आया
ख़त्म होता ही नहीं सिलसिला तन्हाई का