कितना मुश्किल है ख़ुद-बख़ुद रोना
बे-ख़ुदी से रिहा करे कोई
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हम हुए दश्त-ए-नवर्द फिर भी न देखा तुझ को
फ़िक्र-ए-जहान दर्द-ए-मोहब्बत फ़िराक़-ए-यार
ज़िंदगी तुझ से ये गिला है मुझे
रास्ता रोक लिया मेरा किसी बच्चे ने
है अजब सी कश्मकश दिल में 'असर'
जो लोग डरते हैं रातों को अपने साए से
जाने क्यूँ लोग ग़म से डरते हैं
साया भी साथ छोड़ गया अब तो ऐ 'असर'
उदास हो न तू ऐ दिल किसी के रोने से
उल्फ़त के बदले उन से मिला दर्द-ए-ला-इलाज
ज़िंदगी इक नई राह पर