ज़िंदगी इक नई राह पर
बे-इरादा ही चलने लगी
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कितना मुश्किल है ख़ुद-बख़ुद रोना
साया भी साथ छोड़ गया अब तो ऐ 'असर'
हम हुए दश्त-ए-नवर्द फिर भी न देखा तुझ को
जुनूँ की ख़ैर हो तुझ को 'असर' मिला सब कुछ
जाने क्यूँ लोग ग़म से डरते हैं
जो लोग डरते हैं रातों को अपने साए से
कोई हमदम बना के देखो तुम
रास्ता रोक लिया मेरा किसी बच्चे ने
ज़िंदगी तुझ से ये गिला है मुझे
फ़िक्र-ए-जहान दर्द-ए-मोहब्बत फ़िराक़-ए-यार
उल्फ़त के बदले उन से मिला दर्द-ए-ला-इलाज