कहाँ सर छुपाएँ पता ही नहीं
कि गिरने लगी घर की दीवार अब
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तलातुम में कभी उतरा था 'असग़र'
दिल में 'असग़र' के ख़ुशियों की बरसात थी
सारी दुनिया को जीतने वाला
''ख़ुश्क पत्ता है तो हवा से डर''
कहाँ खो गए मेरे ग़म-ख़्वार अब
सर पे दस्तार जब सलामत है
शहर तो कब का जल चुका 'असग़र'
बात कुछ भी न थी क्यूँ ख़फ़ा हो गया
चैन मुझ को मिला कहाँ अब तक