सब का तो मुदावा कर डाला अपना ही मुदावा कर न सके
सब के तो गरेबाँ सी डाले अपना ही गरेबाँ भूल गए
Mir Taqi Mir
Jaun Eliya
Anwar Masood
Wasi Shah
Mohsin Naqvi
Faiz Ahmad Faiz
Ahmad Faraz
Gulzar
Rahat Indori
Javed Akhtar
Habib Jalib
Parveen Shakir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1886) Peoples Rate This
न हम-आहंग-ए-मसीहा न हरीफ़-ए-जिब्रील
नहीं ये फ़िक्र कोई रहबर-ए-कामिल नहीं मिलता
हमारा झंडा
शहर-ए-निगार
रूदाद-ए-ग़म-ए-उल्फ़त उन से हम क्या कहते क्यूँकर कहते
ये तीरगी-ए-शब ही कुछ सुब्ह-तराज़ आती
सारा आलम गोश-बर-आवाज़ है
ये जहाँ बारगह-ए-रित्ल-ए-गिराँ है साक़ी
दामन-ए-दिल पे नहीं बारिश-ए-इल्हाम अभी
मुझे साग़र दोबारा मिल गया है
रोएँ न अभी अहल-ए-नज़र हाल पे मेरे
कुछ तुम्हारी निगाह काफ़िर थी