दिल को महव-ए-ग़म-ए-दिलदार किए बैठे हैं
रिंद बनते हैं मगर ज़हर पिए बैठे हैं
चाहते हैं कि हर इक ज़र्रा शगूफ़ा बन जाए
और ख़ुद दिल ही में इक ख़ार लिए बैठे हैं
Jaun Eliya
Allama Iqbal
Ahmad Faraz
Anwar Masood
Mohsin Naqvi
Faiz Ahmad Faiz
Parveen Shakir
Wasi Shah
Rahat Indori
Habib Jalib
Gulzar
Javed Akhtar
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दफ़्न कर सकता हूँ सीने में तुम्हारे राज़ को
साज़गार है हमदम इन दिनों जहाँ अपना
इज़्न-ए-ख़िराम लेते हुए आसमाँ से हम
न उन का ज़ेहन साफ़ है न मेरा क़ल्ब साफ़ है
ख़ाना-ब-दोश
बोल! अरी ओ धरती बोल!
रात और रेल
ताज जब मर्द के माथे पे नज़र आता है
जुनून-ए-शौक़ अब भी कम नहीं है
रुख़्सत ऐ हम-सफ़रो शहर-ए-निगार आ ही गया
अयादत
वक़्त की सई-ए-मुसलसल कारगर होती गई