कोई भी ख़ुश नहीं है इस ख़बर से
कि दुनिया जल्द लौटेगी सफ़र से
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उर्दू
तमाशा ज़िंदगी का रोज़ ओ शब है
इल्म
सब्र की हद भी तो कुछ होती है
पढ़-लिख कर हम नाम करेंगे
पस-ए-दीवार हुज्जत किस लिए है
सब ख़्वाब पुराने हैं हर चंद फ़साने हैं
किसी के जिस्म-ओ-जाँ छलनी किसी के बाल-ओ-पर टूटे
तीरगी शम्अ बनी राहगुज़र में आई
तुझ को ख़िफ़्फ़त से बचा लूँ पानी
ज़रूरत ढल गई रिश्ते में वर्ना