सब ख़्वाब पुराने हैं हर चंद फ़साने हैं
हम रोज़ बसाते हैं आँखों में नई दुनिया
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सब्र की हद भी तो कुछ होती है
पस-ए-दीवार हुज्जत किस लिए है
पढ़-लिख कर हम नाम करेंगे
ज़रूरत ढल गई रिश्ते में वर्ना
पियारे बच्चों की पियारी तमन्नाएँ
ख़्वाब ही ख़्वाब की ताबीर हुआ तो जाना
इल्म
अदब ही ज़िंदगी में जब न आया
कोई भी ख़ुश नहीं है इस ख़बर से
ख़्वाब की दिल्ली
जागते ही नज़र अख़बार में खो जाती है
किसी के जिस्म-ओ-जाँ छलनी किसी के बाल-ओ-पर टूटे