ख़्वाब ही ख़्वाब की ताबीर हुआ तो जाना
ज़िंदगी क्यूँ किसी आँखों के असर में आई
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पस-ए-दीवार हुज्जत किस लिए है
हम को आगे जाना है
अदब ही ज़िंदगी में जब न आया
सर पे सूरज हो मगर साया न हो ऐसा न था
किसी के जिस्म-ओ-जाँ छलनी किसी के बाल-ओ-पर टूटे
सब ख़्वाब पुराने हैं हर चंद फ़साने हैं
जागते ही नज़र अख़बार में खो जाती है
पियारे बच्चों की पियारी तमन्नाएँ
ख़्वाब की दिल्ली
सब्र की हद भी तो कुछ होती है
ज़रूरत ढल गई रिश्ते में वर्ना
उर्दू