वो इक सुख़न ही हमारी सनद न बन जाए
वो इक सुख़न जो तुम्हारी सनद नहीं रखता
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नुमू-पज़ीर हूँ हर दम कि मुझ में दम है अभी
चाहिए क्या तुम्हें तोहफ़े में बता दो वर्ना
कब कहाँ क्या मिरे दिलदार उठा लाएँगे
तराश और भी अपने तसव्वुर-ए-रब को
कहीं जमाल-पज़ीरी की हद नहीं रखता
तूफ़ान-ए-बहर ख़ाक डराता मुझे 'तुराब'
इश्क़ तो अपने लहू में ही सँवरता है सो हम
तन्हाइयों के दश्त में भागे जो रात भर
आसमानों में भी दरवाज़ा लगा कर देखें
मेहनत से मिल गया जो दफ़ीने के बीच था
यूँ मोहब्बत से न हम ख़ाना-ब-दोशों को बुला