तराश और भी अपने तसव्वुर-ए-रब को
तिरे ख़ुदा से तो बेहतर मिरा सनम है अभी
Gulzar
Wasi Shah
Jaun Eliya
Anwar Masood
Mohsin Naqvi
Mir Taqi Mir
Allama Iqbal
Rahat Indori
Parveen Shakir
Faiz Ahmad Faiz
Javed Akhtar
Habib Jalib
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(767) Peoples Rate This
तूफ़ान-ए-बहर ख़ाक डराता मुझे 'तुराब'
कहीं जमाल-पज़ीरी की हद नहीं रखता
यूँ मोहब्बत से न हम ख़ाना-ब-दोशों को बुला
चाहिए क्या तुम्हें तोहफ़े में बता दो वर्ना
इश्क़ तो अपने लहू में ही सँवरता है सो हम
कब कहाँ क्या मिरे दिलदार उठा लाएँगे
वो इक सुख़न ही हमारी सनद न बन जाए
तन्हाइयों के दश्त में भागे जो रात भर
हाँ तुझे भी तो मयस्सर नहीं तुझ सा कोई
नुमू-पज़ीर हूँ हर दम कि मुझ में दम है अभी
आसमानों में भी दरवाज़ा लगा कर देखें