हाथ पत्थर से हो गए मानूस
शौक़ कूज़ा-गरी का क्या कीजे
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फ़ज़ा-ए-नीलगूँ का ध्यान छोड़ दे
ऐसे पामाल कि पहचान में आते ही नहीं
पंछियों की किसी क़तार के साथ
किस ने कहा कि चुप हूँ मियाँ बोलता नहीं
मिरी कहानी तिरी कहानी से मुख़्तलिफ़ है
क़दम क़दम निशान ढूँढता रहा
जब तिरे ख़्वाब से बेदार हुआ करते थे
देख क़िंदील रुख़-ए-यार की जानिब मत देख
मुझ को इतना तो यक़ीं है मैं हूँ
इधर महसूस होती है कमी उस की
अपने वीराने का नुक़सान नहीं चाहता मैं