बुराई या भलाई गो है अपने वास्ते लेकिन
किसी को क्यूँ कहें हम बद कि बद-गोई से क्या हासिल
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तू कहीं हो दिल-ए-दीवाना वहाँ पहुँचेगा
जब कि पहलू में हमारे बुत-ए-ख़ुद-काम न हो
बात करनी मुझे मुश्किल कभी ऐसी तो न थी
न उस का भेद यारी से न अय्यारी से हाथ आया
गालियाँ तनख़्वाह ठहरी है अगर बट जाएगी
पान की सुर्ख़ी नहीं लब पर बुत-ए-ख़ूँ-ख़्वार के
लोगों का एहसान है मुझ पर और तिरा मैं शुक्र-गुज़ार
बुत-परस्ती जिस से होवे हक़-परस्ती ऐ 'ज़फ़र'
याँ तक अदू का पास है उन को कि बज़्म में
वो सौ सौ अठखटों से घर से बाहर दो क़दम निकले
बुलबुल को बाग़बाँ से न सय्याद से गिला
हमदमो दिल के लगाने में कहो लगता है क्या