अब दिल को समझाए कौन
बात अगरचे है माक़ूल
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गिला भी तुझ से बहुत है मगर मोहब्बत भी
होते हैं जो सब के वो किसी के नहीं होते
ख़त में क्या क्या लिखूँ याद आती है हर बात पे बात
दूर साया सा है क्या फूलों में
ख़त्म हुईं सारी बातें
हर-चंद मेरे हाल से वो बे-ख़बर नहीं
कर लिया दिन में काम आठ से पाँच
जब भी मिले हम उन से उन्हों ने यही कहा
तेरे दिए हुए दुख
कितना काम करेंगे
हम जैसे तेग़-ए-ज़ुल्म से डर भी गए तो क्या
कैसे याद रही तुझ को