अपनी बातों के ज़माने तो हवा-बुर्द हुए
अब किया करते हैं हम सूरत-ए-हालात पे बात
Habib Jalib
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जब भी मिले हम उन से उन्हों ने यही कहा
होते हैं जो सब के वो किसी के नहीं होते
हज़ार कहता रहा मैं कि यार एक मिनट
जिन दिनों ग़म ज़ियादा होता है
गिला भी तुझ से बहुत है मगर मोहब्बत भी
अब दिल को समझाए कौन
ख़त में क्या क्या लिखूँ याद आती है हर बात पे बात
दिल लगा लेते हैं अहल-ए-दिल वतन कोई भी हो
कैसे याद रही तुझ को
कितना काम करेंगे
तेरे दिए हुए दुख
कुछ तो हस्सास हम ज़ियादा हैं