वक़्त आने दे दिखा देंगे तुझे ऐ आसमाँ
हम अभी से क्यूँ बताएँ क्या हमारे दिल में है
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सोचने का भी नहीं वक़्त मयस्सर मुझ को
अब मुलाक़ात कहाँ शीशे से पैमाने से
जुरअत-ए-शौक़ तो क्या कुछ नहीं कहती लेकिन
क्या करें जाम-ओ-सुबू हाथ पकड़ लेते हैं
मजबूरियों को अपनी कहें क्या किसी से हम
सारी उम्मीद रही जाती है
ये बुत फिर अब के बहुत सर उठा के बैठे हैं
अब रहा क्या है जो अब आए हैं आने वाले
ग़ैरों ने ग़ैर जान के हम को उठा दिया
निगाह-ए-क़हर होगी या मोहब्बत की नज़र होगी
हँसी 'बिस्मिल' की हालत पर किसी को
हो न मायूस ख़ुदा से 'बिस्मिल'