परेशाँ है वो झूटा इश्क़ कर के
वफ़ा करने की नौबत आ गई है
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ख़ुशी से काँप रही थीं ये उँगलियाँ इतनी
आज पैवंद की ज़रूरत है
वलवले जब हवा के बैठ गए
चलती साँसों को जाम करने लगा
जाहिलों को सलाम करना है
शहसवारों ने रौशनी माँगी
ख़ूँ पिला कर जो शेर पाला था
मैं ने उस की तरफ़ से ख़त लिक्खा
ख़त लिफ़ाफ़े में ग़ैर का निकला
वफ़ा-दारी ग़नीमत हो गई क्या
एक मेहमाँ का हिज्र तारी है
ज़रा मोहतात होना चाहिए था