निगाहें करती रह जाती हैं हिज्जे
वो जब चेहरे से इमला बोलता है
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जाहिलों को सलाम करना है
सहारे जाने-पहचाने बना लूँ
पूछ लेते वो बस मिज़ाज मिरा
शहसवारों ने रौशनी माँगी
आप तशरीफ़ लाए थे इक रोज़
सहराओं ने माँगा पानी
परेशाँ है वो झूटा इश्क़ कर के
वफ़ा-दारी ग़नीमत हो गई क्या
एक मेहमाँ का हिज्र तारी है
बदन का ज़िक्र बातिल है तो आओ
ख़ुशी से काँप रही थीं ये उँगलियाँ इतनी
ख़ूँ पिला कर जो शेर पाला था