ये आरज़ू भी बड़ी चीज़ है मगर हमदम
विसाल-ए-यार फ़क़त आरज़ू की बात नहीं
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ये जफ़ा-ए-ग़म का चारा वो नजात-ए-दिल का आलम
फलस्तीनी बच्चे के लिए लोरी
मर्ग-ए-सोज़-ए-मोहब्बत
तिरे ग़म को जाँ की तलाश थी तिरे जाँ-निसार चले गए
हज़ार दर्द शब-ए-आरज़ू की राह में है
बे-दम हुए बीमार दवा क्यूँ नहीं देते
क़र्ज़-ए-निगाह-ए-यार अदा कर चुके हैं हम
व-यबक़ा-वज्ह-ओ-रब्बिक
खिले जो एक दरीचे में आज हुस्न के फूल
हर हक़ीक़त मजाज़ हो जाए
बहार आई
आए कुछ अब्र कुछ शराब आए