आँधियों का ख़्वाब अधूरा रह गया
हाथ में इक सूखा पत्ता रह गया
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अपनी लग़्ज़िश को तो इल्ज़ाम न देगा कोई
सुना है हर घड़ी तू मुस्कुराता रहता है
इस सियह-ख़ाने में तुझ को जागना है रात भर
बहुत धोका किया ख़ुद को मगर क्या कर लिया मैं ने
कोई भी शख़्स न हंगामा-ए-मकाँ में मिला
धीरे धीरे शाम का आँखों में हर मंज़र बुझा
वो अलग चुप है ख़ुद से शर्मा कर
होने वाला था इक हादसा रह गया
शहर में जीना है चलना दो-रुख़ी तलवार पर
उजड़े नगर में शाम कभी कर लिया करें
पौ फटी एक ताज़ा कहानी मिली