Ghazals of Fuzail Jafri
नाम | फ़ुज़ैल जाफ़री |
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अंग्रेज़ी नाम | Fuzail Jafri |
जन्म की तारीख | 1936 |
जन्म स्थान | Mumbai |
वो मौज-ए-ख़ुनुक शहर-ए-शरर तक नहीं आई
तेज़ आँधी रात अँधयारी अकेला राह-रौ
सुब्ह तक हम रात का ज़ाद-ए-सफ़र हो जाएँगे
सर-ए-सहरा-ए-दुनिया फूल यूँ ही तो नहीं खिलते
साहब दिलों से राह में आँखें मिला के देख
सदाक़तों के दहकते शोलों पे मुद्दतों तक चला किए हम
रुख़ हवाओं के किसी सम्त हों मंज़र हैं वही
रिश्ता जिगर का ख़ून-ए-जिगर से नहीं रहा
क़दम क़दम पे हैं बिखरी हक़ीक़तें क्या क्या
निभेगी किस तरह दिल सोचता है
नौमीद करे दिल को न मंज़िल का पता दे
मौज-ए-ख़ूँ सर से गुज़र जाती है हर रात मिरे
मैं उजड़ा शहर था तपता था दश्त के मानिंद
लफ़्ज़ों का साएबान बना लेने दीजिए
ख़ून पलकों पे सर-ए-शाम जमेगा कैसे
ख़ुद लफ़्ज़ पस-ए-लफ़्ज़ कभी देख सके भी
कैसा मकान साया-ए-दीवार भी नहीं
कैसा मकान साया-ए-दीवार भी नहीं
हर सम्त लहू-रंग घटा छाई सी क्यूँ है
है इबारत जो ग़म-ए-दिल से वो वहशत भी न थी
गुज़र रही है मगर ख़ासे इज़्तिराब के साथ
गिर भी जाएँ तो न मिस्मार समझिए हम को
घर से बे-ज़ार हूँ कॉलेज में तबीअ'त न लगे
दीवाने इतने जम्अ' हुए शहर बन गया
दिलों के आइने धुँदले पड़े हैं
दिल मुतमइन है हर्फ़-ए-वफ़ा के बग़ैर भी
चुप रहे देख के उन आँखों के तेवर आशिक़
छू भी तो नहीं सकते हम मौज-ए-सबा बन कर
चेहरे मकान राह के पत्थर बदल गए
चमकते चाँद से चेहरों के मंज़र से निकल आए