तर्क-ए-तअल्लुक़ात ख़ुद अपना क़ुसूर था
अब क्या गिला कि उन को हमारी ख़बर नहीं
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सुब्ह-ए-काज़िब
तेरा ख़ुलूस-ए-दिल तो महल्ल-ए-नज़र नहीं
शादाँ न हो गर मुझ पे कड़ा वक़्त पड़ा है
उस ने माइल-ब-करम हो के बुलाया है मुझे
मुझे ज़िंदगी की दुआ देने वाले
दिल जलाने से कहाँ दूर अंधेरा होगा
तेरी आँखों में जो नशा है पज़ीराई का
एक नज़्म
शब-ताब
स्वाँग अब तर्क-ए-मोहब्बत का रचाया जाए
एक हुस्न-फ़रोश लड़की के नाम