उस ने इस अंदाज़ से देखा मुझे
ज़िंदगी भर का गिला जाता रहा
Ahmad Faraz
Faiz Ahmad Faiz
Mir Taqi Mir
Gulzar
Javed Akhtar
Wasi Shah
Anwar Masood
Jaun Eliya
Habib Jalib
Mohsin Naqvi
Rahat Indori
Parveen Shakir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(768) Peoples Rate This
तुम्हें भी मालूम हो हक़ीक़त कुछ अपनी रंगीं-अदाइयों की
उस बेवफ़ा की बज़्म से चश्म-ए-ख़याल में
अश्क-ए-ग़म उक़्दा-कुशा-ए-ख़लिश-ए-जाँ निकला
खोया हुआ सा रहता हूँ अक्सर मैं इश्क़ में
महव-ए-कमाल-ए-आरज़ू मुझ को बना के भूल जा
ग़म-ए-दिल अब किसी के बस का नहीं
निज़ाम-ए-तबीअत से घबरा गया दिल
हर मुसीबत थी मुझे ताज़ा पयाम-ए-आफ़ियत
उठने को तो उठा हूँ महफ़िल से तिरी लेकिन
तुम अज़ीज़ और तुम्हारा ग़म भी अज़ीज़
दर्द सा उठ के न रह जाए कहीं दिल के क़रीब