हाथ रख रख के वो सीने पे किसी का कहना
दिल से दर्द उठता है पहले कि जिगर से पहले
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ज़िंदगी फ़िरदौस-ए-गुम-गश्ता को पा सकती नहीं
इरादे बाँधता हूँ सोचता हूँ तोड़ देता हूँ
कोई चारा नहीं दुआ के सिवा
क्यूँ हिज्र के शिकवे करता है क्यूँ दर्द के रोने रोता है
शैख़ का ख़ौफ़ हमें हश्र का धड़का हम को
इलाही एक ग़म-ए-रोज़गार क्या कम था
बुत-कदे से चले हो काबे को
मज़हका आओ उड़ाएँ इश्क़-ए-बे-बुनियाद का
मौत के चेहरे पे है क्यूँ मुर्दनी छाई हुई
हैरान न हो देख मैं क्या देख रहा हूँ
वफ़ा का लाज़मी था ये नतीजा
यरान-ए-बे-बिसात कि हर बाज़ी-ए-हयात