वफ़ा का लाज़मी था ये नतीजा
सज़ा अपने किए की पा रहा हूँ
Allama Iqbal
Anwar Masood
Mohsin Naqvi
Faiz Ahmad Faiz
Ahmad Faraz
Javed Akhtar
Mir Taqi Mir
Rahat Indori
Gulzar
Habib Jalib
Wasi Shah
Parveen Shakir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(962) Peoples Rate This
कोई दवा न दे सके मशवरा-ए-दुआ दिया
ये क्या मक़ाम है वो नज़ारे कहाँ गए
वो सरख़ुशी दे कि ज़िंदगी को शबाब से बहर-याब कर दे
आने वाले किसी तूफ़ान का रोना रो कर
दिल-ए-बे-मुद्दआ है और मैं हूँ
निगाह-ए-आरज़ू-आमोज़ का चर्चा न हो जाए
अभी मीआद बाक़ी है सितम की
उठ उठ के बैठ बैठ चुकी गर्द राह की
तिरे दिल में भी हैं कुदूरतें तिरे लब पे भी हैं शिकायतें
हुस्न ने सीखीं ग़रीब-आज़ारियाँ
आने वाले जाने वाले हर ज़माने के लिए